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कविता

मुआवजा

अंकिता रासुरी


एक भैंस और दो गाय मरे थे अबके चौमासा साबू चाचा की छान में
पिछले साल मर गईं थी तीन बकरियाँ
बाकी बची हुई एक बकरी को खुद ही मारकर खा गए
सुना है प्रधान चाचा ने दिलवाया है मुआवजा
प्रतापु चाचा के वर्षों पुराने टूटे पड़े खंडहर पर
उनके एक और नए मकान की छत के के लिए
और साबू चाचा के कमजोर हाथ
खुद ही कर रहे हैं चिनाई छज्जे की
क्योंकि पत्थर तोड़ते हाथ नहीं ला पाए
शाम को कच्ची ही सही एक थैली दारू
और भामा चाची के पास था ही कहाँ वक्त कि वो
प्रधान चाची के खेतों मे रोप पाती नाज को
बूढ़ी सास को छोड़कर।


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